How to Control Overthinking and Negative Thoughts – Bhagavad Gita से जानिए मन को शांत करने के उपाय

"भगवद गीता के उपायों से ओवरथिंकिंग से मुक्ति पाएं"

How to Control Overthinking and Negative Thoughts? आज के समय में हर व्यक्ति “Overthinking” और नेगेटिव सोच (Negative Thoughts) से जूझ रहा है। छोटी-छोटी बातें हमारे दिमाग में बार-बार घूमती रहती हैं और चिंता, तनाव और बेचैनी को जन्म देती हैं। लेकिन यह समस्या कोई नई नहीं है। हजारों साल पहले कुरुक्षेत्र के युद्ध में अर्जुन भी ऐसे ही मानसिक संघर्ष से गुजरे थे। तब भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें भाग्य या ताकत नहीं, बल्कि मन को नियंत्रित करने की ज्ञानयुक्त शिक्षा दी, जिसे आज हम भगवद गीता के रूप में जानते हैं। गीता के ये उपदेश आज के दौर में भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने तब थे।

मन का चंचल होना स्वाभाविक है, लेकिन नियंत्रित किया जा सकता है

श्रीमद्भगवद गीता के अध्याय 6, श्लोक 34 में अर्जुन कहते हैं कि “मन बहुत चंचल और बलवान है, उसे नियंत्रित करना वायु को रोकने जैसा कठिन है।” श्रीकृष्ण ने इसका समाधान दिया – अभ्यास (Abhyasa) और वैराग्य (Vairagya)।
इसका अर्थ है कि “Overthinking” को रोकना कठिन जरूर है लेकिन असंभव नहीं। यदि हम नियमित ध्यान, सकारात्मक कार्यों में व्यस्तता और परिणामों के मोह से मुक्त होकर कार्य करें, तो मन को शांत किया जा सकता है।

क्या करें।

  • अपने मन को दोषी न ठहराएं, यह उसकी स्वाभाविक प्रकृति है।
  • लेकिन मन को ट्रेनिंग देकर स्थिर और शांत बनाया जा सकता है।

ओवरथिंकिंग क्या है और यह क्यों होती है?

ओवरथिंकिंग का मतलब होता है किसी भी बात या परिस्थिति के बारे में बार-बार और बेवजह सोचते रहना। जब हम किसी छोटी समस्या को बार-बार दिमाग में दोहराते हैं या भविष्य में होने वाली घटनाओं के बारे में बार-बार चिंता करते हैं, तो वह “Overthinking” कहलाती है। इससे हमारे दिमाग को आराम नहीं मिल पाता और हम तनाव, चिंता और डर का अनुभव करने लगते हैं।

ओवरथिंकिंग अक्सर तब होती है जब हम चीजों को ज़्यादा कंट्रोल करना चाहते हैं या भविष्य को लेकर बहुत ज्यादा अनिश्चितता महसूस करते हैं। उदाहरण के लिए, “अगर मैं असफल हो गया तो क्या होगा?”, “लोग मेरे बारे में क्या सोचेंगे?”, या “क्या मैंने सही फैसला लिया है?” जैसे सवाल बार-बार दिमाग में आते हैं। धीरे-धीरे यह आदत बन जाती है और मानसिक शांति को खत्म कर देती है।

मुख्य कारण:

  • भविष्य की चिंता करना
  • खुद पर या दूसरों पर विश्वास की कमी
  • बीते हुए समय की गलतियों पर पछताना
  • हर स्थिति पर पूर्ण नियंत्रण की इच्छा
  • अकेलेपन या फ्री टाइम में दिमाग का खाली रहना

श्रीमद्भगवद गीता के अनुसार मन को कैसे शांत करें?

1. अभ्यास और वैराग्य से मन पर नियंत्रण:
भगवद गीता के अनुसार मन को नियंत्रित करना कठिन है, लेकिन नामुमकिन नहीं। अध्याय 6, श्लोक 35 में श्रीकृष्ण कहते हैं कि “अभ्यास (नियमित प्रयास) और वैराग्य (लगाव छोड़ना)” ही मन को शांत करने के मुख्य उपाय हैं। रोजाना ध्यान, सकारात्मक सोच और अच्छी आदतों से मन को स्थिर बनाया जा सकता है।

2. कर्म करो, परिणाम की चिंता मत करो (कर्मयोग):
गीता का सबसे प्रसिद्ध संदेश है – “कर्म करो, फल की चिंता मत करो” (अध्याय 2, श्लोक 47)। जब हम सिर्फ अपने काम पर ध्यान देते हैं और परिणाम की चिंता छोड़ देते हैं, तो हमारा मन फालतू सोचने से बच जाता है। यही कर्मयोग है – बिना चिंता किए, पूरी निष्ठा से कार्य करना।

3. वर्तमान में रहना सीखें:
ओवरथिंकिंग अक्सर भविष्य या अतीत के बारे में सोचने से होती है। गीता हमें सिखाती है कि केवल वर्तमान क्षण में ही जीवन है। जब हम किसी काम में पूरे मन से लगे रहते हैं, तो मन भटकने का समय ही नहीं मिलता।

4. सुख-दुख में समता रखें:
श्रीकृष्ण ने कहा है कि सुख-दुख, लाभ-हानि, जीत-हार में समान भाव रखें। अगर हम हर परिस्थिति में स्थिर रहना सीख लें तो नकारात्मक विचारों का असर कम हो जाता है। यह समभाव (equanimity) ही मन को शांति देता है।

5. ध्यान (Meditation) का अभ्यास करें:
ध्यान को गीता में ध्यान योग (Dhyana Yoga) कहा गया है। रोजाना कुछ समय शांत बैठकर अपनी सांस पर ध्यान केंद्रित करना, मन के विचारों को धीमा करता है और अंदरूनी शांति लाता है। धीरे-धीरे, यह अभ्यास मन को अपना मित्र बना देता है, शत्रु नहीं।

गीता के ज्ञान से मानसिक तनाव और एंग्जायटी कैसे कम करें?

श्रीमद्भगवद गीता केवल धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि मानसिक शांति का गहरा विज्ञान है। गीता हमें सिखाती है कि तनाव और चिंता का मुख्य कारण हमारी सोच और दृष्टिकोण है, परिस्थितियाँ नहीं। जब हम हर परिस्थिति को ईश्वर की योजना मानते हैं और अपने कर्म पर ध्यान केंद्रित करते हैं, तो भविष्य की चिंता और असफलता का डर कम हो जाता है।

श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा कि “तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने में है, परिणाम पर नहीं”। जब हम परिणाम की चिंता छोड़ देते हैं, तो हमारा मन तनावमुक्त हो जाता है। इसके साथ ही, गीता यह भी सिखाती है कि मन को बार-बार अभ्यास और वैराग्य से शांत करना चाहिए। ध्यान, प्रार्थना और सकारात्मक सोच के माध्यम से जब हम अपने मन को नियंत्रित करते हैं, तो एंग्जायटी अपने आप कम हो जाती है।

असल में, गीता हमें आत्म-विश्वास, धैर्य और समभाव सिखाती है, जो किसी भी तनावपूर्ण स्थिति में हमें मानसिक संतुलन बनाए रखने में मदद करता है।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल

Q1. ओवरथिंकिंग को रोकने के लिए गीता में क्या कहा गया है?
भगवद गीता कहती है कि मन चंचल है लेकिन अभ्यास और वैराग्य से इसे नियंत्रित किया जा सकता है।

Q2. क्या गीता के उपदेश Anxiety दूर करने में मदद करते हैं?
हां, गीता के ज्ञान से व्यक्ति अपने कर्तव्यों पर ध्यान केंद्रित करता है और परिणाम की चिंता छोड़ देता है, जिससे तनाव और चिंता कम होती है।

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अगर आप भी ओवरथिंकिंग और नेगेटिव सोच का शिकार हैं, तो याद रखें — आप अकेले नहीं हैं। अर्जुन जैसा महान योद्धा भी कभी खुद पर शक करता था, डरता था, और मानसिक तनाव में डूब गया था। लेकिन श्रीकृष्ण ने उसे यह सिखाया कि मन पर काबू पाना ही असली युद्ध है।

आपका मन कभी-कभी आपको डरा सकता है, पर वही मन अगर सही दिशा मिले तो आपकी सबसे बड़ी ताकत बन सकता है। इसलिए खुद पर विश्वास रखें, धीरे-धीरे अभ्यास करें, और हर दिन थोड़ा बेहतर बनने की कोशिश करें। जीवन में समस्याएँ आएंगी, लेकिन आपका दृष्टिकोण ही तय करेगा कि आप उनसे कैसे निपटते हैं। शांति बाहर नहीं, आपके भीतर है। बस अपने विचारों को संभालना सीखिए, बाकी सब अपने आप ठीक होने लगेगा।

“युद्ध बाहर नहीं, मन के अंदर है। श्रीकृष्ण की तरह, अपने भीतर के विचारों को मित्र बनाइए, शत्रु नहीं।”

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