Karva Chauth Ki Kahani हर साल सुहागिन महिलाओं के लिए एक भावनात्मक और आस्था से जुड़ा त्योहार लेकर आती है। यह सिर्फ एक व्रत नहीं, बल्कि पति–पत्नी के गहरे प्रेम, विश्वास और समर्पण का प्रतीक है। इस दिन महिलाएं सूर्योदय से लेकर चाँद निकलने तक निर्जला उपवास रखती हैं और भगवान से अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि करवा चौथ की कहानी की शुरुआत कैसे हुई? चलिए जानते हैं इस खूबसूरत त्योहार के पीछे की पौराणिक और लोककथा।
करवा चौथ का ऐतिहासिक महत्व
Karva Chauth Ki Kahani का ज़िक्र प्राचीन हिंदू ग्रंथों और लोककथाओं में मिलता है। कहा जाता है कि यह परंपरा सदियों पुरानी है, जब महिलाएं अपने पतियों के युद्ध या व्यापारिक यात्राओं पर जाने से पहले उनके सुरक्षित लौटने की कामना करती थीं। “करवा” शब्द का मतलब होता है मिट्टी का घड़ा, जो इस व्रत का प्रमुख प्रतीक है, और “चौथ” का अर्थ होता है चतुर्थी, यानी चाँद का चौथा दिन।
यह दिन न केवल पति की दीर्घायु के लिए उपवास का प्रतीक है, बल्कि यह महिलाओं के बीच एकता और शक्ति का भी प्रतीक है। पुराने समय में महिलाएं एक-दूसरे के साथ “करवा चौथ कथा” सुनती थीं, करवा बदलती थीं और सखीभाव के साथ व्रत पूरा करती थीं।
करवा चौथ की मुख्य कथा – रानी वीरवती की कहानी
Karva Chauth Ki Kahani में सबसे प्रसिद्ध कथा है रानी वीरवती की। कहा जाता है कि वीरवती सात भाइयों की इकलौती बहन थी और बहुत लाड़-प्यार में पली थी। शादी के बाद जब उसने पहली बार करवा चौथ का व्रत रखा, तो दिनभर बिना पानी और भोजन के वह बहुत कमजोर हो गई। उसके भाई उसकी हालत देखकर चिंतित हो उठे।
उन्होंने अपनी बहन को व्रत तोड़ने के लिए झूठ से एक दीपक को छलनी में रखकर कहा “देखो दीदी, चाँद निकल आया है।”
जैसे ही वीरवती ने चाँद समझकर अपना व्रत तोड़ा और भोजन किया, कुछ ही देर बाद उसके पति की मृत्यु का समाचार आ गया।
यह देखकर वह फूट-फूटकर रोने लगी। उसकी सच्ची श्रद्धा और पश्चाताप को देखकर देवी पार्वती प्रकट हुईं और कहा,
“वीरवती, तुमने प्रेम और आस्था से व्रत किया है, परंतु धोखे से तोड़ा है। अब तुम अगले वर्ष करवा चौथ का व्रत सच्चे मन से रखो, तुम्हारा पति पुनः जीवित होगा।”
अगले वर्ष वीरवती ने पूरी निष्ठा से व्रत रखा और उसकी तपस्या सफल हुई। उसके पति को जीवनदान मिला। तभी से Karva Chauth Ki Kahani महिलाओं के लिए अटूट विश्वास और सच्चे प्रेम की मिसाल बन गई।
करवा चौथ की दूसरी कथा – सावित्री और सत्यवान
एक और प्रसिद्ध Karva Chauth Ki Kahani सावित्री और सत्यवान की है। जब यमराज सत्यवान की आत्मा लेने आए, तो सावित्री ने उनका पीछा नहीं छोड़ा। उसकी भक्ति, प्रेम और दृढ़ निश्चय से यमराज इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने सत्यवान को जीवनदान दे दिया। यह कथा इस बात का प्रतीक है कि पत्नी का सच्चा प्रेम मृत्यु को भी मात दे सकता है।
करवा चौथ का रीति-रिवाज और पूजन विधि
करवा चौथ की कहानी तभी पूर्ण होती है जब हम इसके पूजन विधि को समझें। इस दिन महिलाएं सुबह सूर्योदय से पहले सरगी खाती हैं, जो सास अपनी बहू को देती हैं। इसमें फल, मिठाई, सूखे मेवे और पानी होता है।
फिर पूरे दिन निर्जला उपवास रखकर महिलाएं शाम को करवा चौथ की पूजा करती हैं। पूजा के दौरान वे देवी पार्वती, भगवान शिव और गणेश जी की आराधना करती हैं। इसके बाद Karva Chauth Ki Kahani सुनी जाती है, और अंत में जब चाँद निकलता है, तो महिलाएं छलनी से चाँद को और फिर अपने पति के चेहरे को देखती हैं। पति उनके हाथों से पानी पिलाकर व्रत तुड़वाता है।
आस्था के साथ जुड़ा प्यार का उत्सव
आज के आधुनिक युग में भी Karva Chauth Ki Kahani महिलाओं के दिलों में वही भावनाएँ जगाती है, जो सदियों पहले होती थीं। अब यह सिर्फ एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि प्यार और रिश्ते की गहराई को दर्शाने वाला फेस्टिवल बन गया है।
कई जगहों पर पुरुष भी अपनी पत्नियों के साथ व्रत रखते हैं, ताकि समानता और सम्मान का संदेश दिया जा सके। यह त्योहार हमें याद दिलाता है कि रिश्तों की मजबूती सिर्फ शब्दों से नहीं, बल्कि त्याग, समर्पण और सच्ची निष्ठा से होती है।
करवा चौथ का सांस्कृतिक महत्व
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Karva Chauth Ki Kahani सिर्फ उत्तर भारत तक सीमित नहीं रही। अब यह त्योहार पूरे देश में और विदेशों में भी मनाया जाता है। फिल्मों, सोशल मीडिया और टीवी सीरियल्स ने इसे एक ग्लैमरस रंग दे दिया है।
फिर भी, इसकी असली खूबसूरती उस भाव में है जब एक महिला पूरे दिन बिना कुछ खाए अपने जीवनसाथी की लंबी उम्र के लिए प्रार्थना करती है। यह व्रत स्त्री शक्ति, प्रेम और विश्वास का अद्भुत उदाहरण है।
करवा चौथ की कहानी का सार
Karva Chauth Ki Kahani हमें यह सिखाती है कि सच्चा प्यार सिर्फ कहने भर से नहीं होता, उसे निभाने के लिए विश्वास और समर्पण चाहिए। यह दिन सिर्फ उपवास का नहीं, बल्कि आत्मविश्वास और एक-दूसरे के लिए त्याग का प्रतीक है।
रानी वीरवती और सावित्री जैसी कहानियाँ हमें बताती हैं कि सच्चा प्रेम कभी हार नहीं मानता। चाहे यमराज सामने हों या भाग्य की रेखाएँ बदलनी हों एक स्त्री का सच्चा प्रेम हर मुश्किल को जीत सकता है।

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एक्स्ट्रा टिप:
अगर आप Karva Chauth Ki Kahani के साथ अपने व्रत को और भी खास बनाना चाहते हैं, तो पूजा के दौरान देवी पार्वती का नाम स्मरण करें और अपने पति के साथ “सात जन्मों” का वचन फिर से दोहराएं।
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