अमेरिका की फेडरल अपील्स कोर्ट ने पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की उस विवादित नीति (Tariff) पर बड़ा झटका दिया है, जिसके तहत उन्होंने “राष्ट्रीय आपातकाल” का हवाला देकर पूरी दुनिया पर भारी-भरकम इम्पोर्ट टैक्स लगा दिए थे। ट्रंप ने अप्रैल 2025 में यह कहते हुए लगभग सभी ट्रेडिंग पार्टनर्स पर 10% से लेकर 50% तक के आयात शुल्क थोप दिए कि अमेरिका का लगातार बढ़ता ट्रेड डेफिसिट (व्यापार घाटा) अब देश के लिए “राष्ट्रीय संकट” बन चुका है। उन्होंने दावा किया कि 1977 के इंटरनेशनल इमरजेंसी इकोनॉमिक पावर एक्ट (IEEPA) के तहत उन्हें यह अधिकार है कि वे कांग्रेस की मंजूरी के बिना ही टैक्स लगा सकते हैं।
हालांकि, अदालत का कहना है कि ट्रंप ने इस कानून का गलत तरीके से इस्तेमाल किया और अपनी संवैधानिक शक्तियों की सीमा से बाहर चले गए। अमेरिकी संविधान के मुताबिक टैक्स और Tariff लगाने का असली अधिकार कांग्रेस के पास है, लेकिन ट्रंप ने इसे बायपास करते हुए एकतरफा फैसले लिए। इसी वजह से न्यूयॉर्क की ट्रेड कोर्ट ने मई 2025 में उनके फैसले को “अनुचित और गैर-कानूनी” करार दिया था, और अब फेडरल अपील्स कोर्ट ने भी उस फैसले को ज्यादातर हिस्सों में बरकरार रखा है।
इस आदेश के बाद ट्रंप के कई Tariff सवालों के घेरे में आ गए हैं — जिनमें चीन, कनाडा, मैक्सिको समेत लगभग सभी अमेरिकी ट्रेडिंग पार्टनर्स पर लगाए गए भारी शुल्क शामिल हैं। कोर्ट का मानना है कि “कांग्रेस का इरादा कभी भी राष्ट्रपति को अनलिमिटेड पावर देने का नहीं था,” इसलिए ट्रंप की यह दलील स्वीकार नहीं की जा सकती कि हर ट्रेड डेफिसिट को “राष्ट्रीय आपातकाल” घोषित कर टैक्स बढ़ाए जाएं।
क्या हुआ कोर्ट में?
शुक्रवार (29 अगस्त 2025) को आए फैसले में कोर्ट ने साफ कहा कि ट्रंप ने 1977 के इंटरनेशनल इमरजेंसी इकोनॉमिक पावर एक्ट का गलत इस्तेमाल करते हुए अमेरिका के पुराने ट्रेड घाटे को “राष्ट्रीय आपातकाल” करार दिया और दुनिया भर पर इम्पोर्ट टैक्स (Tariff) थोप दिए।
- फैसले में न्यूयॉर्क की एक ट्रेड कोर्ट के मई 2025 के आदेश को भी ज्यादातर बरकरार रखा गया।
- हालांकि, 7-4 के फैसले में अदालत ने ट्रंप के टैक्स को तुरंत खत्म करने वाले हिस्से को हटा दिया है। यानी, ट्रंप प्रशासन के पास अब सुप्रीम कोर्ट में अपील करने का मौका बचा है।
यह फैसला ट्रंप की ट्रेड पॉलिसी के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है, जिसने पिछले कुछ सालों से मार्केट को हिला कर रखा था, बिजनेस में अनिश्चितता बढ़ा दी थी और महंगाई व धीमी ग्रोथ की आशंका पैदा कर दी थी।
किन टैक्स को मिली चुनौती?
अदालत का फैसला सीधे तौर पर उन Tariff पर केंद्रित है, जिन्हें ट्रंप ने अप्रैल 2025 में लगभग सभी अमेरिकी ट्रेडिंग पार्टनर्स पर थोप दिया था। उस वक्त ट्रंप ने दो तरह के टैक्स लगाए थे—
- 10% का बेसलाइन Tariff लगभग हर देश पर।
- 50% तक के “रिक्रिप्रोकल टैरिफ” उन देशों पर, जिनके साथ अमेरिका का बड़ा ट्रेड डेफिसिट (व्यापार घाटा) था।
इससे पहले, फरवरी 2025 में, ट्रंप ने कनाडा, मैक्सिको और चीन पर भी इसी कानून का इस्तेमाल करते हुए भारी शुल्क लगा दिए थे। उनकी दलील थी कि ये देश न सिर्फ अमेरिकी अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा रहे हैं बल्कि गैरकानूनी प्रवासियों और ड्रग्स की तस्करी पर भी रोक लगाने में नाकाम रहे हैं।
हालांकि, सभी देशों ने ट्रंप की शर्तें नहीं मानीं। कुछ बड़े आर्थिक ब्लॉक्स—जैसे ब्रिटेन, जापान और यूरोपीय संघ (EU)—ने अमेरिकी दबाव में झुकते हुए असमान व्यापार समझौते साइन कर लिए ताकि और बड़े टैक्स से बचा जा सके।
लेकिन जो देश नहीं माने, उन पर और भी ज्यादा सख्त Tariff लगाए गए:
- लाओस पर 40% शुल्क
- अल्जीरिया पर 30% शुल्क
इसके अलावा, ट्रंप ने बाकी सभी देशों पर कम से कम 10% का बेसलाइन Tariff जारी रखा। अदालत का मानना है कि इतने व्यापक स्तर पर टैक्स लगाने का अधिकार राष्ट्रपति के पास नहीं है, क्योंकि यह असल में कांग्रेस का क्षेत्राधिकार है।
कोर्ट ने ट्रंप के खिलाफ क्यों बोला?
डोनाल्ड ट्रंप का कहना था कि उन्हें वही अधिकार है जो 1970 के दशक में राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने इस्तेमाल किया था। निक्सन ने उस समय आर्थिक संकट और डॉलर-गोल्ड स्टैंडर्ड खत्म होने के बाद आपातकाल घोषित कर टैरिफ लगाए थे। ट्रंप का तर्क था कि अगर निक्सन ऐसा कर सकते थे तो उन्हें भी इंटरनेशनल इमरजेंसी इकोनॉमिक पावर एक्ट (IEEPA) के तहत वही अधिकार मिलना चाहिए।
लेकिन अदालत ने ट्रंप की दलील खारिज कर दी। कोर्ट का कहना था कि ट्रंप ने इस कानून का इस्तेमाल “पावर का ओवरयूज़” करते हुए किया और यह राष्ट्रपति को अनलिमिटेड ताकत देने जैसा हो जाएगा।
न्यूयॉर्क की ट्रेड कोर्ट ने पहले ही मई 2025 में कहा था कि ट्रंप के “लिबरेशन डे टैरिफ” (जो उन्होंने 2 अप्रैल 2025 को लगाए थे) किसी भी कानूनी सीमा से बाहर हैं। अब फेडरल अपील्स कोर्ट ने भी उसी राय को मजबूत किया।
कोर्ट के शब्दों में:
“यह मानना मुश्किल है कि कांग्रेस चाहती थी कि राष्ट्रपति को बिना रोकटोक टैक्स लगाने का अधिकार मिल जाए।”
यानी, अदालत ने साफ कर दिया कि राष्ट्रपति चाहे कितने भी शक्तिशाली हों, लेकिन टैक्स और Tariff लगाने का मूल अधिकार हमेशा कांग्रेस के पास ही रहेगा।
भारत पर क्या असर?:- अमेरिका के इन टैरिफ फैसलों का असर भारत जैसे देशों पर भी पड़ सकता है। हाल ही में अमेरिका ने भारत पर 50% टैक्स लगाया था, जिस पर प्रधानमंत्री मोदी ने साफ कहा था कि “स्वदेशी (Made in India) ही है असली जवाब”। “इसी के साथ, ट्रंप ने रूस से भारत की तेल खरीद पर भी बड़ा एक्शन लिया था, जिससे भारत की ऊर्जा नीति पर सवाल खड़े हो गए।”
अब ट्रंप की ट्रेड पॉलिसी का क्या होगा?

- सरकार को डर है कि अगर ये टैक्स खत्म हुए तो अब तक वसूले गए $159 बिलियन (जुलाई तक का आंकड़ा) वापस करना पड़ सकता है।
- इससे अमेरिकी खजाने पर बड़ा झटका लगेगा।
- वहीं, ट्रंप का “नेगोशिएशन टूल” भी कमजोर हो सकता है। दूसरे देश अब डील्स करने से बच सकते हैं या शर्तें फिर से तय करने की कोशिश कर सकते हैं।
ट्रंप ने सोशल मीडिया पर लिखा – “अगर ये फैसला ऐसे ही रहा तो यह अमेरिका को बर्बाद कर देगा।” और उन्होंने सुप्रीम कोर्ट जाने की कसम खाई है।
ट्रंप के पास और क्या विकल्प हैं?
अदालत ने भले ही ट्रंप के “आपातकाल वाले टैरिफ” को खारिज कर दिया हो, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि उनके पास अब कोई रास्ता ही नहीं बचा। अमेरिकी कानून में राष्ट्रपति के पास कुछ सीमित विकल्प मौजूद हैं, जिनका इस्तेमाल करके वह इम्पोर्ट टैक्स लगा सकते हैं।
- 1974 ट्रेड एक्ट: इस कानून के तहत ट्रंप चाहें तो व्यापार घाटे वाले देशों पर टैरिफ लगा सकते हैं, लेकिन इसमें कई पाबंदियां हैं।
- अधिकतम 15% तक Tariff ही लगाया जा सकता है।
- वह भी सिर्फ 150 दिनों के लिए।
यानी लंबे समय तक और बड़े पैमाने पर टैक्स लगाने का अधिकार इस एक्ट से नहीं मिलता।
- 1962 ट्रेड एक्सपेंशन एक्ट (Section 232): इसका इस्तेमाल ट्रंप पहले भी कर चुके हैं, जब उन्होंने विदेशी स्टील और एल्यूमिनियम पर शुल्क लगाया था।
- इस सेक्शन के तहत राष्ट्रपति उन प्रोडक्ट्स पर टैरिफ लगा सकते हैं जिन्हें अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा माना जाए।
- लेकिन इसमें एक शर्त है—इसके लिए पहले कॉमर्स डिपार्टमेंट की जांच जरूरी होती है। यानी राष्ट्रपति मनमर्जी से तुरंत टैक्स नहीं लगा सकते।
कुल मिलाकर, ट्रंप के पास कुछ विकल्प तो हैं, लेकिन वे न तो उतने तेज़ हैं और न ही उतने व्यापक जितना कि आपातकाल घोषित कर लगाए गए Tariff। यही वजह है कि अदालत के फैसले के बाद उनकी “फ्री हैंड” वाली पॉलिसी पर बड़ा असर पड़ेगा।
इस फैसले और टैरिफ विवाद को बेहतर समझने के लिए आप आधिकारिक स्रोत भी देख सकते हैं। U.S. Court of Appeals for the Federal Circuit की वेबसाइट पर पूरा आदेश उपलब्ध है। वहीं, ट्रंप ने जिस 1977 International Emergency Economic Powers Act का हवाला दिया था, उसकी जानकारी Cornell Law पर देखी जा सकती है। इसके अलावा, टैरिफ से जुड़े अन्य अमेरिकी कानून जैसे Trade Expansion Act of 1962 (Section 232) और Trade Act of 1974 भी महत्वपूर्ण हैं। इस पूरे विवाद पर ताज़ा अपडेट्स के लिए Reuters की रिपोर्ट्स पढ़ी जा सकती हैं।
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कुल मिलाकर, यह फैसला ट्रंप की “आर्थिक ताकत” पर बड़ी चोट माना जा रहा है। अब तक ट्रंप अपनी मर्जी से पूरी दुनिया पर इम्पोर्ट टैक्स थोपते रहे थे और इसे अमेरिका की ताकत बताकर पेश करते थे। लेकिन अदालत ने साफ कर दिया है कि राष्ट्रपति को कांग्रेस से ऊपर नहीं रखा जा सकता। अब अगली जंग सुप्रीम कोर्ट में होगी, जहां ट्रंप राहत पाने की उम्मीद कर रहे हैं। अगर वहां भी उन्हें झटका मिला, तो उनकी पूरी ट्रेड पॉलिसी ढह सकती है और वैश्विक व्यापार समीकरणों पर बड़ा असर पड़ सकता है।
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